ग़ज़ल: सफलता

दोस्त ईमान को बनाईये
सफलता ज़िन्दगी में पाईये

हवाएँ खुश्क हैं ज़माने की
नमी मेहनत  की कुछ लाईये

सितमगर का तिलिस्म मोहक है
कहाँ भागूँ ज़रा बताईये

हँसी होठों पर मन व्याकुल है
अजब हालत है कैसे गाईये

मुसाफिर का धर्म तो चलना है
मंज़िलों की दिशा बतलाईये

गाँव अब शहर से भी बदतर हैं
नहीं देखे तो देख आईये

मोम का दिल हुआ अब पत्थर है
कोई भी चोट अब लगाईये

कवि कश्यप की कलमकारी है
नज़र ना -नुकर कर लगाईये

जाल इस ज़िन्दगी का भ्रामक है
भटक मत रास्ते में जाईये

मुश्किलों में मुकाम मिलता है
मुश्किलों से नहीं घबराईये

दोस्त ईमान को बनाईये
सफलता ज़िन्दगी में पाईये
(कवि अशोक कश्यप)

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