दोस्तों नमस्कार,
आज 08 -03 -2014 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर करीब 15 वर्ष पहले लिखी कविता नारी पेश करता हूँ ………

नारी:

नारी से दुनिया सारी, फिर भी नारी बेचारी
रिश्ते-नांतों को निभाने में, नारी नर पे है सदां भारी
नारी से दुनिया सारी, फिर भी नारी बेचारी

घर में बेटी ने जन्म लिया घर वालों को तब जीना आया
मनमानी जो बाप सदां करता उस बाप को ग़म पीना आया
कुछ बड़ी हुई तो घर का काम नाजुक हाथों से करती थी
बेटा-बेटी में भेद देख वो समझके भी ना समझती थी
ससुराल के सुख में भी ना भूली भैया, बाबा और महतारी

नारी से दुनिया सारी, फिर भी नारी बेचारी

जिस भाई की कोई बहन नहीं, उस भाई से पूंछो बहन क्या है
छोटी है तो संस्कारी देवी, बड़ी बहन तो स्नेही माँ है
रक्षाबंधन के दिन सूनी वो कलाई देखकर रोता है
काली हैं दीवाली की रातें, भाई दूज को दिनभर सोता है
रिश्ते की जो कोई बहन मिले, लगती है जान से भी प्यारी

नारी से दुनिया सारी, फिर भी नारी बेचारी

प्रेयसी बनी ये राधा सी तन से नहीं मन से प्यार किया
दिल-दिमाग की तो बात छोडो जीवन ही प्यार पर वार दिया
धोखा खाकर भी प्यार को ये बददुआ कभी नहीं बोली थी
तू जिसे लूटकर उछल रहा वो सच्ची तेरी हमजोलो थी
खुद ठगा हुआ महसूस किया जब समझा तू ये दुनिया-दारी

नारी से दुनिया सारी, फिर भी नारी बेचारी

पत्नी ये सती सावित्री-सी, यम से भी पति को मांग लिया
संस्कारी, त्यागी सीता-सी, पति के संग वन-वन गमन किया
तुलसी, अनुसुइया, अहिल्या ये, देवों के भी सिर झुका दिए
संहारिनी, दुर्गा, महाकाली शिव-शंकर जिनको नमन किये
नर को ये बना दे नारायण, 'करबा' के दिन है छवि न्यारी

नारी से दुनिया सारी, फिर भी नारी बेचारी

माँ के रूप की बात ही क्या है, धरती पर भगवान् है वो
जिसकी कोख से जन्म लिए हैं, अब तक के अवतार हैं जो
कौशल्या, देवकी, यशोदा, जीजाबाई-सी माता हैं
इन्हीं से शिक्षा पाकर बच्चा, शूरवीर कहलाता है
लालन-पालन ही से करती, जीवन यात्रा की तैयारी
नारी से दुनिया सारी, फिर भी नारी बेचारी

रिश्ते-नांतों को निभाने में, नारी नर पे है सदां भारी
नारी से दुनिया सारी, फिर भी नारी बेचारी
(कवि अशोक कश्यप)

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